Roza Kholne Ki Dua : दुआ अल्लाह SWT से सच्ची प्रार्थना के लिए एक अरबी शब्द है। दुआ मोमिन का हथियार और इबादत का निचोड़ है। रिवायत है कि अल्लाह के नबी मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा:
“दुआ इबादत है।” [अदब अल-मुफ़्राद 714]
कुरान के शब्दों में:
“और तुम्हारा रब कहता है, ‘मुझे पुकारो; मैं तुम्हें जवाब दूंगा।’बेशक, जो लोग मेरी इबादत को हकीर समझते हैं वह जेह्न्नुम में दाखिल होंगे ।’ [ग़ाफिर 40:60]
दुआ और रमज़ान का महीना एक साथ चलते हैं। पाक महीने के दौरान अपने रब को पुकारना और उनके साथ गहरा रूहानी ताल्कालुक रखना अकीदत का एक अहम अमल है ।
अपने आप में एक अच्छा काम होने के अलावा, दुआ नेक कार्यों, आत्म-शुद्धि और उपवास के दिन के महत्वपूर्ण दैनिक कार्यों में सामान्य ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है। आम तौर पर, विश्वासी कठिनाई, दर्द और दुख के समय ईमानदार और मार्मिक प्रार्थनाओं की ओर रुख करते हैं। सभी आराम के स्रोत और कठिनाई से राहत देने वाले के रूप में अल्लाह SWT में विश्वास उन्हें मजबूत विश्वास और आत्मविश्वास के साथ उसे पुकारने और याद करने के लिए प्रेरित करता है।
रमज़ान में रोज़े के लिए दुआएँ:
रोज़ेदार की दुआ अस्वीकार नहीं की जाती, ख़ासकर रोज़ा खोलने के समय। निम्नलिखित हदीस स्पष्ट करती है कि कैसे एक रोज़ा रखने वाले व्यक्ति की दुआ का जवाब अल्लाह SWT द्वारा दिया जाता है। अल्लाह के नबी ने कहा:
“तीन हैं जिनकी प्रार्थना अस्वीकार नहीं की जाती: एक न्यायी शासक, रोज़ा रखने वाला जब अपना रोज़ा खोलता है , और जिस पर अत्याचार किया गया इनकी दुआएं बादलों से ऊपर उठाई जाती है, इसके लिए आसमान के दरवाजे खोल दिए जाते हैं” , और रबुल आलिमिन कहता है ‘अपनी ताकत से, मैं तुम्हे जरुर अता करूंगा , तुम्हारा समर्थन करूंगा [गलत करने वाले के खिलाफ], कुछ समय के बाद भी।’
[Tirmidhi (2526): Classed Saheeh by Albaani in Saheeh at-Tirmidhi]
उपरोक्त कथन के आलोक में, विश्वासी यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि वे पवित्र महीने के दौरान दुआ में संलग्न रहें। पैगंबर साहब या साथियों से संबंधित कुछ दुआएं हैं। यह अनुशंसा की जाती है कि रोज़ा रखने वाला व्यक्ति इन दुआओं को याद रखे ताकि दुआ स्वीकार किए जाने के समय का अधिकतम लाभ उठाया जा सके। दुआ अपने शब्दों या भाषा में भी की जा सकती है। अल्लाह SWT के लिए दिल खोल कर तवज्जो और ध्यान और यकीन के साथ दुआ करना ज़रूरी है है।
दुनिया भर में कुछ ऐसी दुआएँ हैं जिन्हें मुसलमान उपवास के महीने के दौरान विभिन्न समयों पर पढ़ते हैं।
नया चाँद को देखने की दुआ:
तल्हा इब्न उबैद-उल्लाह की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब पैगंबर मोहम्मद (स.अ .व ) चाँद देखते तो यह अल्फाज़ कहते :
“अल्लाहुम्मा अहिल्लाहु अलायना बिल-युम्नी वाल-ईमान वाल-सलामा वाल-इस्लाम। रब्बी वा रब्बुका अल्लाह (“Allahumma ahillahu ‘alayna bi’l-yumni wa’l-iman wa’l-salamah wa’l-islam. Rabbiy wa rabbuka Allah)
तर्हेजुमा : ऐ अल्लाह, हम पर नया चाँद बरकत , ईमान , सलामती और इस्लाम के साथ तलु फरमा । मेरा और तुम्हारा रब अल्लाह है)।” [सहीह अल-तिर्मिधि, 2745 में अल-अल्बानी द्वारा सहीह के रूप में वर्गीकृत]
In Arabic : اللَّهمَّ أَهلَّهُ علينَا بالأمنِ والإيمانِ والسَّلامةِ والإسلام ِ ربِّي وربُّكَ اللَّهُ
रोज़ा खोलने / इफ्तार की दुआ: (Roza Kholne Ki Dua)
एक दुआ है जो पैगंबर मोहम्मद (स.अ .व ) से स्पष्ट रूप से सुनाई गई थी। रोज़ा रखने के बाद वह कहते:
“धाहाबा अल-ज़माउ वबतलत-अल-उरूक वा थबाता-अल-अजर इन शा अल्लाह (“Dhahaba al-zamau wabtalat-al-urooq wa thabata-al-ajar in sha Allah )
तर्जुमा : प्यास बुझ गई है, नसें गीली हो गई हैं, और अगर अल्लाह ने चाहा तो इनाम निश्चित है)।” [अबू दाऊद]
यह दुआ रोजा खोलने के बाद ही बोलनी चाहिए।
कुछ विद्वानों से यह भी रिवायत है कि सहाबा में से एक फ़रमाते थे:
“अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुमतु वा बिका आमंन्तु वा ‘ आलइका तवक्कलतु वा ‘ अला रिज़की का अफ्तरतु | ( Allahhumma inni laka sumtu wa bika aamantu wa alayka tawakkaltu wa ala rizq- ika aftartu” )
In Arabic : اَللّٰهُمَّ اِنَّی لَکَ صُمْتُ وَبِکَ اٰمَنْتُ وَعَلَيْکَ تَوَکَّلْتُ وَعَلٰی رِزْقِکَ اَفْطَرْتُ.
तर्जुमा : अल्लाह, मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा है और तेरे रिजक से इफ्तार किया )।” हालाँकि, कुछ विद्वानों द्वारा इसे एक कमज़ोर कथन माना जाता है।
मेज़बान के लिए दुआ:
चूंकि रमज़ान परिवारों के साथ साझा करने और एक साथ आने का समय है, इसलिए कई लोग अन्य लोगों के साथ इफ्तार करेंगे। जब किसी अन्य व्यक्ति द्वारा रोज़ा खोलने के लिए दावत दी जाती है, तो मेहमान के लिए बहुत ज़रूरी हैं की वह मेज़बान के लिए रिज़क में इज़ाफा , मगफिरत और रहमत की दुआ करें। स्वीकृत कथनों के अनुसार, पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने मेजबान के लिए दुआ करते समय इस दुनिया और उसके बाद दोनों की भलाईयो का ज़िक्र किया।
अनस (आर.अ ) से रिवायत है कि पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) साद इब्न उबादा के पास आए थे जो कुछ रोटी और जैतून का तेल लाए थे, जिसमें से उन्होंने खाया, फिर पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) ने साद इब्न उबादा के लिए एक दुआ में यह फ़रमाया :
أفطر عندكم الصائمون , وأكل طعامكم الأبرار , وصلت عليكم الملائكة
तर्जुमा : “रोज़ेदार आपके साथ इफ्तार करें , नेक लोग आपके साथ खाना खाएँ, और फ़रिश्ते आप पर दरूद भेजें।” अबू दाऊद (3854)
Dua Shab e Qadr – शब् क़द्र और उसकी की अहमीयत (Laylat ul Qadr)